FAQ

उत्तर क्रमांक 1:जब अंडा और शुक्राणु का मिलन होता है तो बच्चा बनने की प्रक्रिया शुरू होती है। औरत के अंडकोष से हर महीने एक अंडा पैदा होता है जिसका जीवन काल सिर्फ कुछ ही घंटे का होता है इसी दौरान यदि शुक्राणु अंडे तक पहुंच जाए तो फर्टिलाइजेशन निश्चित हो जाती है और बच्चा बनने की यात्रा की सुखद शुरुआत हो जाती है।

उत्तर क्रमांक 2: महिला के दो अंडकोष मैं से एक अंडकोष मैं एक महीने में एक बार मैं अक्सर एक अंडा बनता है। ज्यादातर अंडे महीने के 14 वें या 15 वे दिन बनते हैं( याद रखें की महीने की दिनों की गिनती उस दिन से शुरू होती है जिस दिन से महीना शुरू होता है)

उत्तर क्रमांक 3:अंडे बनने की प्रक्रिया काफी जटिल है जब शरीर के कई हार्मोन सटीक मात्रा में अंडकोष को इस्टीमूलेट करते हैं तो ही एक स्वस्थ अंडे का जन्म होता है जरा से उतार-चढ़ाव से भी इस प्रक्रिया की गाड़ी ऊपर नीचे हो जाती है और बच्चे होने का सपना धूमिल होने लगता है.. आज के समय में अंडा बनने में जो सबसे ज्यादा बाधा डालती है वह है पीसीओडी की बीमारी और जिन महिलाओं में या जिन परिवारों में डायबिटीज की बीमारी या मोटापे की बीमारी पाई जाती है अक्सर उन महिलाओं में पीसीओडी काफी आम है इन रोगों से चेहरे पर ज्यादा मुंहासे और बाल आ जाते हैं। इसके अलावा थायराइड नामक बीमारी और हारमोनल इंबैलेंस से भी अंडा बनने में बाधा आ जाती है।

अंडा बनने की प्रक्रिया में व्यवधान मानसिक तनाव से भी आ सकता है। थोड़ा बहुत तनाव भी मस्तिष्क की ग्रंथियों में पैदा होने वाले हार्मोन लेवल में ऐसे बदलाव ला सकता है की अंडकोष की कार्यप्रणाली खराब हो सकती है इसीलिए निसंतान दंपत्ति जो इलाज कराने के लिए आते हैं अक्सर डॉक्टर से सुनते हैं की चिंता छोड़कर इलाज कराइए भगवान पर भरोसा रखिए ताकि इलाज सफल हो।

उत्तर क्रमांक 4: सबसे पहले शरीर के जनन अंगों की संरचना समझना जरूरी है। स्त्री के शरीर में गर्भ शाय एक तरफ योनि से जुड़ा होता है तो दूसरी ओर दो फैलोपियन ट्यूब के साथ। ट्यूबों के झूलते हुए छोर के बिल्कुल पास अंडाशय होते हैं । जैसे ही अंडकोष से अंडा निकलता है , फैलोपियन ट्यूब अंडे को उठा लेती है और अपने अंदर ले लेती है।

दूसरी तरफ संभोग के बाद करोड़ों की तादात में शुक्राणु योनि में पहुंच जाते हैं। सबसे तेज और स्वस्थ शुक्राणुओं तेजी से दौड़ कर गर्भ शाय में प्रवेश कर लेते हैं और फिर कुछ गर्भ शाय पार करके फैलोपियन ट्यूब में घुस जाते हैं। जैसे ही अंडा सामने आता है कई शुक्राणु अंडे को फर्टिलाइज करने की स्पर्धा में जुट जाते हैं।कुछ समय के प्रयत्न के बाद किसी एक शुक्राणु को सफलता हाथ लगती है और अंडा फ़र्टिलाइज़ हो जाता है और भ्रूण तैयार हो जाता है। बाकी सब शुक्राणु मैदान छोड़ देते हैं।अगले दो-तीन दिन में भ्रूण ट्यूब से गर्भशाय तक की अपनी यात्रा पूरी कर लेता है फिर शुरू होती है गर्भ शाय में भ्रमण सही स्थान के चयन के लिए। पांचवें या छठवें दिन एक बढ़िया जगह का चयन कर लिया जाता है और भ्रूण उस जगह चिपक कर आगे बढ़ने लगता है जिसे इंप्लांटेशन कहा जाता है।

उत्तर क्रमांक 5: वीर्य की मात्रा 2.5 मिलीलीटर होती है। नॉर्मल फर्टिलिटी के लिए शुक्राणु की मात्रा कम से कम (डेढ़ करोड़) 15 मिलियन/मी.ली. होनी चाहिए। ज्यादातर पुरुषों में शुक्राणु की मात्रा 40 से 50 मिलियन/मी.ली देखने को मिलती है। 15 मिलियन शुक्राणु से कम मात्रा निसंतानता का कारण बन सकती है। संख्या के अलावा शुक्राणु की चाल बहुत जरूरी है। कम से कम 32% शुक्राणुओं में दौड़ कर आगे बढ़ने की क्षमता नजर आनी चाहिए । फिर कम से कम 4 परसेंट शुक्राणुओं की शक्ल सूरत नॉर्मल होनी चाहिए।

उत्तर क्रमांक 5: यह एक बहुत ही साधारण सी बात है कि जिसे संतान नहीं हो पाती वह इसका जवाब ढूंढना चाहता है कि ऐसा क्यों हो रहा है। कई बार वह अपने आप को दोषी समझ बैठता है कि उन्होंने ऐसा क्या जुर्म किया है या ऐसा क्या खाया पिया है या ऐसी किस चीज का सामना हुआ है कि संत्तान नहीं हो पा रही है ।

निसंतानता के कारकों में बहुत सारी चीजों का योगदान होता है। सबसे महत्वपूर्ण है अकारण निसंतानता जिसे समझना बहुत जरूरी है। इस स्थिति में सब टेस्ट नॉर्मल आते है लेकिन फिर भी बच्चा नहीं रुकता। इसके इलावा आपको आनुवंशिक पूर्ववर्ती हो सकती है कि समय से पहले ही महिला के अंडे ख़त्म या कमजोर हो जाते हो या शुक्राणु में कमी हो जाती है।

यह भी ना भूले की महिला की उमर का सीधा सम्बन्ध है उसके माँ बन पाने से। महिलाओं में बढ़ती उमर के साथ इलाज़ के बावजूद भी संतान प्राप्ति कठिन होती चली जाती है । इसलिए समय से डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए ।

उत्तर क्रमांक 5: महिला की महावारी के 2रे या 3रे दिन से इलाज़ करना शुरू होता है। आई.यू.आई कि प्रक्रिया लगभग 2 हफ़्ते में पूरी हो जाती है। आईवीएफ (IVF) की प्रक्रिया में अंडो को तैयार करने में और शरीर से बाहर निकाल कर भ्रूण बनाने में 15 से 20 दिन लग जाते है। भ्रूण प्रत्यारोपण दो प्रकार से हो सकता है - तुरंत या फ्रीजिंग के बाद। अगर फ्रेश प्रत्यारोपण किया जा रहा है तो अंडे निकालने के बाद 3 से 5 दिनों में भ्रूण प्रत्यारोपित कर दिया जाता है। और अगर फ्रीजिंग के बाद करा जाए तो अंडों को शरीर से निकालने के 4-5 हफ़्तों बाद भ्रूण का प्रत्यारोपण हो जाता है।

उत्तर क्रमांक 5: जब आपको अंडे बनाने के इंजेक्शंस लग रहे होते है तब आपके अंडाशय का साइज बड़ा होने लगता है। उस समय आप वॉकिंग कर सकते है स्विमिंग कर सकते है और ऐसा कोई व्यायाम कर सकते हैं जिसमे ज्यादा थकावट ना हो। परन्तु ऐसे कोई काम या व्यायाम या योग जिसमें आपको कूदना पड़े, पेट व कमर को मोड़ना पड़े या झटका आए, ऐसा कोई काम या योग या व्यायाम बिल्कुल नहीं करना चाहिए। आपके अंडाशय का साइज बड़ा होने की वजह से वह घूम सकता है जिसके कारण पेठ में बहुत तेज दर्द हो सकता है और उल्टी भी आ जाती है । यह एक आपातकालीन स्थिति हो सकती है और ऑपरेशन की नोबत भी आ जाती है।

परंतु आप अपनी साधारण दिनचर्या में कोई परिवर्तन नहीं लाएं और अपना जीवन सामान्य रखें। अगर कोई विशेष बात का विचार आए तो अपने डॉक्टर या परामर्शदाता से संपर्क करें।

उत्तर क्रमांक 5: आई.वी.एफ (IVF) के इलाज के दौरान कई प्रकार के हॉरमोन के इंजेक्शंस और दवाईया दी जाती है जिसका प्रभाव ठीक वैसा ही होता है जैसे नॉर्मल माहवारी के हार्मोन्स का होता है। किसी किसी में थोड़ा पेट फूलना, किसी को छाती में भारीपन, किसी का भावुक होना भी देखा जाता है।

ये दुष्प्रभाव नई एडवांस दवाइयों और इंजेक्शंस में बहुत ही कम होते हैं और डोज और कितने समय तक उपयोग करना है इस पर निर्भर करते हैं। किसी में कोई साइड इफेक्ट होते भी है तो वह बहुत कम समय तक ही रहते हैं और उन्हें भी इलाज से ना के बराबर किया जा सकता है।

उत्तर क्रमांक 5: आई. वी. एफ. की प्रक्रिया बहुत ही सरल है और नयी नयी तकनीकों के आने से पहले के मुकाबले बिल्कुल दर्द रहित हो चुकी है। पूरी प्रक्रिया में केवल महिला के शरीर से अंडे बाहर निकालने की प्रक्रिया बेहोश करके की जाती है। पूरी प्रक्रिया बहुत ही सरल और एडवांस्ड हो चुकी है जिसमें कोई भी कठिनाई नहीं होती है।

अंडे निकालने की प्रक्रिया एक सर्जिकल प्रोसेस है जिसको 15 से 20 मिनट में पूरा कर लिया जाता है। अंडे निकालने की प्रक्रिया के वक़्त आपको एनेस्थीसिया का इंजेक्शन लगा कर बेहोश कर दिया जाता है और आपको प्रक्रिया पूरी होने के 3-4 घंटे बाद छुट्टी देकर वापस घर भेज दिया जाता है । चूंकि आपको बेहोशी का इंजेक्शंन दिया होता है उस दिन आपको काम पर नहीं जाना चाहिए और ड्राइविंग भी नहीं करनी चाहिए। अगर पेट में भारीपन लगता है तो उसे दवाई से दूर किया जा सकता है। बाकी पूरी प्रक्रिया साधारण सोनोग्राफी जैसी होती है जिसमें किसी तरह का कोई दर्द नहीं होता।

उत्तर क्रमांक 5: अगर आपने IUI करवाया है तो असफल होने पर तुरंत ही अगले महीने वापस से IUI करवा सकते हैं। लेकिन अगर आपने आई.वी.एफ. (IVF) प्रक्रिया करवाई थी और आपको सफलता प्राप्ति नहीं हुई और आप दोबारा करवाना चाहते है तब यह आपके केस और डॉक्टर पर निर्भर करता है कि अगला इलाज कब लेना चाहिए। कई बार 1 महीने का अंतर देना उचित होता है ताकि शरीर अपनी नॉर्मल स्थिति में वापस आ जाए और हार्मोन्स सामान्य हो सके। हालांकि यह निर्णय पूरी तरह से प्रोटोकॉल और मरीज पर निर्भर करता है ।

उत्तर क्रमांक 5: जो इलाज तकनीकी रूप से बहुत विकसित इलाज़ नहीं होते हैं, जैसे कि टाइम इंटरकोर्स और आई.यू.आई, उनकी सफलता दर स्वाभाविक रूप से बच्चा रुकने के आस पास ही होती है ।

महिला की उम्र का भी इलाज़ की सफलता के साथ सीधा संबंध है। 35 वर्ष से कम उम्र की महिलाओं में आई.यू.आई कि सफलता दर 10 से 20 प्रतिशत देखी गई है और 35 वर्ष पार कर चुकी महिलाओं में इसी इलाज़ का सक्सेस रेट 10 प्रतिशत से भी कम हो जाता है । आई.यू.आई की सफलता दर उमर से प्रभावित होती है।

IVF में लगभग 70 प्रतिशत सफलता देखने को मिलती है। यह एक बहुत विकसित प्रक्रिया है जो पिछले 40 सालों से चली आ रही है। प्रतिदिन नई नई तकनीकों के आने से यह बहुत ही सरल हो चुकी है और आमजन को इसका बहुत फायदा हो रहा है।

In conventional IVF the eggs of a woman are kept in Petri dishes and around 50,000 sperms are laid over each egg leaving them in incubators to fertilize. Sometimes the eggs do not get fertilised by the overlaid sperms resulting in fertilisation failure. In addition, in some cases of male factor infertility, enough sperms to overlay the eggs are not available. ICSI (intracytoplasmic sperm injection) procedure was developed to overcome these problems of fertilization failure and inadequate number of sperms. It is a technique in which an egg is held with a holding pipette and another very thin injecting pipette injects one sperm inside the egg thereby fertilising the egg. This technique reduces the chances of fertilisation failure and is a boon for couples suffering from male factor infertility. Using this technique a couple can have their own genetic baby even when there are no sperms in the semen and have to be extracted surgically from testis or epididymis. This is a very specialised technique wherein very limited number of good healthy morphologically normal sperms can be used to produce embryos.

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